बेंगलुरु. भारतीय सिनेमा के जाने-माने चरित्र अभिनेता और लेखक गिरीश कर्नाड का सोमवार को लंबी बीमारी के बाद बेंगलुरु में निधन हो गया। वे 81 साल के थे। मौत की वजह मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर बताया गया। गिरीश का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उन्हें भारत के जाने-माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फिल्म निर्देशक और नाटककार के तौर पर भी जाना जाता था। वे पद्म भूषण, पद्म श्री और ज्ञानपीठ पुरस्कारों से नवाजे गए। उन्हें चार फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले। इनमें तीन कन्नड़ निदेशक के रूप, जबकि चौथा पटकथा लेखन के लिए मिला।
फिल्मों में कहां से कहां तक गिरीश
हाल के वर्षाें में गिरीश कर्नाड ने सलमान खान की फिल्म ‘एक था टाइगर’ और ‘टाइगर जिंदा है’ में भी काम किया था। टाइगर जिंदा है बॉलीवुड की उनकी अखिरी फिल्म थी। इसमें उन्होंने डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था। गिरीश ने कन्नड़ फिल्म संस्कार (1970) से एक्टिंग और स्क्रीन राइटिंग कॅरियर शुरू किया था। इसके लिए उन्हें कन्नड़ सिनेमा का पहला प्रेसिडेंट गोल्डन लोटस अवार्ड जीता था। बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म 1974 में आयी ‘जादू का शंख’ थी। इसके बाद फिल्म ‘निशांत’ (1975), ‘शिवाय’ और ‘चॉक एन डस्टर’ में भी काम किया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ट्वीट किया, ‘‘गिरीश कर्नाड को उनके बहुमुखी अभिनय के लिए हमेशा याद किया जाएगा। अपनी पसंद के मुद्दों पर उन्होंने पूरे उत्साह के साथ अपने विचार व्यक्त किए। उनके कार्य आने वाले वर्षों में भी लोकप्रिय बने रहेंगे। उनके निधन से दुखी हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।’’ गिरीश के निधन पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने भी शोक व्यक्त किया है।
नौकरी में मन नहीं लगा, तो फिल्मों में आए
गिरीश ने कर्नाटक आर्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। आगे की पढ़ाई इंग्लैंड में पूरी की और फिर भारत लौट आए। उन्होंने चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में सात साल तक काम किया। लेकिन कुछ समय बाद इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे थियेटर के लिए काम करने लगे। गिरीश यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में प्रोफेसर भी रहे, लेकिन मन नहीं लगा तो फिर भारत आ गए। इस बार वे पूरी तरह साहित्य और फिल्मों से जुड़ गए।
पहला नाटक कन्नड़ में लिखा
गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं भाषाओं में एक जैसी पकड़ थी। उनका पहला नाटक कन्नड़ में था, जिसे बाद में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। उनके नाटकों में ‘ययाति’, ‘तुगलक’, ‘हयवदन’, ‘अंजु मल्लिगे’, ‘अग्निमतु माले’, ‘नागमंडल’ और ‘अग्नि और बरखा’ काफी चर्चित हैं।
दिग्गज निदेशकों ने किया नाटकों का निर्देशन
कर्नाड 40 सालों तक नाटककारों के बीच अपनी धाक जमाए रखे। उन्होंने समकालीन अवधारणाओं पर बखूबी लिखा। उनके नाटक देश की सभी भाषाओं में अनुवादित हुए। नाटकों का प्रमुख भारतीय निदेशकों – इब्राहीम अलकाजी, प्रसन्ना, अरविन्द गौड़ और बीवी. कारंत ने अलग- अलग तरीके से इनका यादगार निर्देशन किया था।
इन पुरस्कारों से नवाजे गए
गिरीश कर्नाड को 1992 में पद्म भूषण, 1974 में पद्म श्री, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान प्राप्त हुआ था। 1978 में आई फिल्म भूमिका के लिए गिरीश को नेशनल अवॉर्ड मिला था। उन्हें 1998 में साहित्य के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा गया।