एक कहावत है कि मालिक मेहरबान, तो गधा पहलवान। ऐसा ही कुछ जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) में इन दिनों चल रहा है। ऊपर का आशीर्वाद मिलने के बाद कोई भी अधिकारी गलत काम करने से कतई नहीं डर रहा है। विधि शाखा को ही ले लीजिए। यहां से जिन दो अधिकारियों उप-निदेशक विधि नंद गोपाल गोयल एवं सहायक विधि परामर्शी रुचि अग्रवाल को इनके कारनामों की वजह से जेडीए से हटाया गया था। अब पुनः उन्हें वहीं पोस्टिंग दे दी गई है। वह भी तब जबकि इनके कारनामों के बारे में जेडीए आयुक्त, जेडीए सचिव से लेकर विधि विभाग के प्रमुख सचिव तक को जेडीए की विधि शाखा की ओर से ही दस्तावेजी सबूतों के साथ कानूनी कार्रवाई करने के लिए अनेकों पत्र लिखे हुए हैं।
सूत्रों के मुताबिक इन दोनों अधिकारियों को तत्कालीन डॉयरेक्टर (लॉ) दिनेश गुप्ता द्वारा इनके काले कारनामे उजागर किए जाने एवं एसीडी से जांच कराए जाने की सिफारिश किए जाने पर प्रमुख सचिव विधि विभाग ने जेडीए से हटाकर कार्य व्यवस्था के तहत पहले 26 अप्रैल, 2023 को प्रमुख सचिव विधि विभाग के कार्यालय में लगाया था। इसके बाद 1 मई, 2023 को इन दोनों अधिकारियों की सेवाएं कार्य व्यवस्था के तहत ही पंचायतीराज विभाग को सौंप दी गई थींं। फिर 9 जून, 2023 के आदेश से इन्हें 3 दिन राज्य निर्वाचन आयोग और 2 दिन पंचायती राज विभाग में काम करने को कहा गया था। इस बीच जेडीए के डॉयरेक्टर (लॉ) दिनेश कुमार गुप्ता का 11 अगस्त, 2023 को जेडीए से जिला एवं सत्र न्यायाधीश बूंदी के पद पर तबादला हो गया।
गुप्ता के तबादला होते ही 29 अगस्त, 2023 को इन दोनों अधिकारियों की पोस्टिंग फिर से जेडीए में उन्हीं पदों पर कर दी गई। इतना ही नहीं इसी आदेश में इन दोनों का वेतन भी जयपुर विकास प्राधिकरण से ही उठाए जाने के आदेश भी कर दिए गए। इधर, लॉ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन दोनों अधिकारियों की अप्रैल से अगस्त, 2023 तक की अवधि का वेतन जयपुर विकास प्राधिकरण से उठाना गबन के अपराध के दायरे में आएगा। क्योंकि इन दोनों अधिकारियों ने इस अवधि के दौरान जेडीए में काम ही नहीं किया है। नियमानुसार कोई भी अधिकारी अथवा कर्मचारी जहां ड्यूटी कर रहा है, वहीं से उसके उस अवधि के लिए वेतन-भत्ते उठने चाहिए। क्योंकि इसके लिए संबंधित विभागों को बजट आवंटित किया हुआ होता है। इसलिए जिस अवधि के दौरान इन अधिकारियों ने जेडीए में ड्यूटी ही नही की हो, उसका अवधि का वेतन जेडीए कोष से उठाना गलत है।