झारखंड के पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की जमानत याचिका खारिज

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एक विशेष धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) अदालत ने शुक्रवार को धन शोधन मामले में झारखंड के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘प्रभावशाली व्यक्ति’ होने के नाते वह सबूतों से छेड़छाड़ के अलावा गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।

न्यायाधीश प्रभात कुमार शर्मा ने कहा कि धन शोधन का अपराध राष्ट्रीय हित के लिए एक ‘आर्थिक खतरा’ है और यह अपराधियों द्वारा समाज और अर्थव्यवस्था के परिणामों की परवाह किए बिना व्यक्तिगत लाभ के मकसद से सुनियोजित साजिश के साथ और जानबूझकर किया जाता है। उन्होंने कहा कि विभिन्न न्यायिक फैसलों में यह राय दी गई है कि धन शोधन करने वालों के लिए ‘‘जेल एक नियम है और जमानत एक अपवाद है।” आलम को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपने रांची कार्यालय में पूछताछ के बाद 15 मई को गिरफ्तार किया था। 74 वर्षीय कांग्रेस नेता ग्रामीण विकास मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने यह कहते हुए नियमित जमानत के लिए अदालत का रुख किया था कि वह निर्दोष हैं और उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है जैसा कि आरोप लगाया गया है और उनके खिलाफ कोई वैध सबूत नहीं होने के कारण उन्हें संदेह के आधार पर इस मामले में झूठा फंसाया गया है।

ईडी ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि झारखंड के पूर्व कैबिनेट मंत्री होने के नाते आलम एक ‘प्रभावशाली’ व्यक्ति हैं। उसने कहा कि जांच के दौरान एकत्र किए गए सबूतों से मोटे तौर पर पता चलता है कि सह-आरोपी वीरेंद्र कुमार राम, राज्य ग्रामीण कार्य विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, पुलों और सड़कों के निर्माण से जुड़े सरकारी कार्यों की निवदा के आवंटन और निष्पादन के लिए कमीशन एकत्र करते थे और डेढ़ प्रतिशत का एक निश्चित हिस्सा या कमीशन उनके (राम) वरिष्ठों और राजनेताओं के बीच वितरित किया गया था। ईडी ने दावा किया कि यह कमीशन भी सह-अभियुक्त और आलम के गिरफ्तार निजी सचिव संजीव कुमार लाल ने ‘कुछ व्यक्तियों’ के माध्यम से एकत्र किया था।

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