चंडीगढ़ के ब्रह्म स्वरुप को प्रशासन का हुआ सम्मान

0
35

इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी, चंडीगढ़ में कार्यरत ब्रह्म स्वरुप कोरोना महामारी के दौरान वर्ष 2020 से लगातार बहादुरी से कोविड लाशों को हॉस्पिटल्स की मॉर्चरी से क्रिमेशन ग्राउंड तक पहुंचाते रहे। उन्होंने उस समय में कोविड बॉडीज का संस्कार तक करवाया जब कोविड संक्रमण को लेकर लोगों में भारी दहशत थी।

उनके इसी जज्बे को देखते हुए चंडीगढ़ प्रशासन ने उन्हें कंमेडेशन सर्टिफिकेट(प्रशंसा पत्र) से नवाजा है। सेक्टर 17 परेड ग्राउंड में रिपब्लिक डे परेड के दौरान उन्हें यह सम्मान मिला है।

ब्रह्म स्वरुप ने वर्ष 1996 में इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी में जॉइन किया था। वह बताते हैं कि ड्राइविंग के अलावा भी रेडक्रॉस में वह आगे बढ़ कई काम कर देते हैं।

पहली कोविड बॉडी देख सब घबराए हुए थे
ब्रह्म स्वरुप बताते हैं कि 6 अप्रैल, 2020 को जब वह कोविड की पहली बॉडी मॉर्चुरी से लेने गए तो सभी घबराए हुए थे। उन्होंने खुद बॉडी को उठवा कर फ्यूनरल वैन में डलवाया। कोरोना काल में उन्होंने 1600 से 1700 कोविड डेड बॉडीज को बड़ी ही बहादुरी के साथ शहर के हॉस्पिटल्स की मॉर्चरी से सेक्टर 25 श्मशान घाट तक पहुंचाया।

इनमें चंडीगढ़ समेत अन्य राज्यों की बॉडीज भी होती थी जिन्होंने कोविड बीमारी से चंडीगढ़ में दम तोड़ा था। वहीं उन्होंने निडरता से अपनी इच्छा से आगे बढ़ ऐसी लाशों के संस्कार भी किए। बता दें कि मार्च, 2020 में जब शहर में कोरोना केस आने लगे तो लोगों में काफी घबराहट थी।

इन हॉस्पिटल्स की मार्चरी जाती थी एम्बुलेंस
ब्रह्म स्वरुप बताते हैं कि उन्होंने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल(GMCH), सेक्टर 32, गवर्नमेंट मल्टी-स्पेशलिटी हॉस्पिटल(GMSH) सेक्टर 16 और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च(MGIMER) से कोविड बॉडीज उठा कर श्मशान घाट तक पहुंचाई हैं।

कोविड की डेड बॉडीज ले जाते वक्त उनके साथ UT चंडीगढ़ प्रशासन की सिविल डिफेंस की टीम भी होती थी। बता दें कि UT चंडीगढ़ का रेड क्रॉस का ऑफिस सेक्टर 11 करुणा सदन में है। रिटायरमेंट को 4 साल रह गए हैं मगर फिर भी ब्रह्म स्वरुप पूरी तत्परता से अपनी ड्यूटी करते आ रहे हैं।

परिवार ने डराने की बजाय हौसला बढ़ाया
ब्रह्म स्वरुप बताते हैं कि जब वह कोरोना डेड बॉडीज को उठाने और अंतिम संस्कार करवाने के बाद घर पहुंचते थे तो परिवार में जरा भी घबराहट नहीं होती थी। इसके विपरीत परिवार वाले उनका हौसला बढ़ाते थे। वह परिवार को वह ऊपरी मंजिल में सोने को कह देते मगर उनकी बेटी और पत्नी घबराने के बजाय उन्हें हौसला देती थी।

परिवार उन्हें कहता कि जैसे बॉर्डर पर जवान देश सेवा कर रहे हैं वैसे वह भी सेवा में हैं और जाना सभी ने है। बचाने वाला भगवान है। इसी हिम्मत के साथ वह अपनी ड्यूटी में जुटे रहे

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here