रोचक : इस गांव में 125 वर्षों से हो रहा शास्त्रीय संगीत समारोह

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बकायन (दमोह). बकायन-मध्यप्रदेश के दमोह जिले का छोटा सा गांव। खास बात यह है कि पिछले 125 साल से यहां शास्त्रीय संगीत का अनवरत आयोजन हो रहा है। रोचक यह भी है कि इसकी जिम्मेदारी 110 सालों से एक ही परिवार के पास रही। मराठी माफीदार परिवार 2004 तक इसका आयोजन गांव वालों के साथ मिलकर करता रहा। 2005 में इस संगीत महोत्सव को मप्र अलाउद्दीन संगीत अकादमी ने संभाला। इस साल इस जन जलसे का 125वां आयोजन गुरु पूर्णिमा पर 16-17 जुलाई को हो रहा है। पहली बार इससे राष्ट्रीय संगीत नाट्य अकादमी व दक्षिण मध्य सांस्कृतिक केन्द्र भी जुड़ रहे हैं। इसलिए बड़े कलाकारों का बड़ा जमावड़ा भी लग रहा है।

हम इस आयोजन को देश के ग्रामीण क्षेत्र में होने वाला सबसे प्राचीन शास्त्रीय संगीत समारोह कह सकते हैं। शहरों में होने वाले प्रतिष्ठापूर्ण समारोहों में जालंधर का हरिवल्लभ संगीत समारोह 144 साल से चल रहा है तो आंध्रप्रदेश में पं. त्यागराज संगीत महोत्सव 119 साल का हो गया है। मप्र का तानसेन संगीत समारोह 94 साल से टूटी कड़ियों के साथ जारी है। लेकिन इनसे भी बकायन का मृदंगाचार्य नाना साहब पानसे स्मृति समारोह इस मायने में अलग व महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साधन संपन्न महानगरों से दूर, निपट देहात में होता है और यहां के ग्रामीण भी गजब के श्रोता हैं। वे बड़े-बड़े विकट संगीतज्ञों को दो दिन तक सुनने के लिए दिन-रात जुटे रहते हैं।

60 साल के किसान ऋषि पटेल बचपन से इसमें शिरकत कर रहे हैं तो नौ किमी दूर गांव बटियागढ़ के 30 वर्षीय सुरेन्द्र सोनी 15 साल की उम्र से दो दिन दुकान छोड़कर यहीं डटे रहते हैं। और तो और, जब कथक की प्रस्तुति होती है तो ग्राम की पढ़-अनपढ़ महिलाओं का तांता लग जाता है। सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना उमा डोगरा याद करती हैं कि महिलाएं घूंघट की ओट से उनकी प्रस्तुति निहारती थीं तो उन्हें मंच से कहना पड़ता था-घूंघट तो हटा लो।

जब तक इसके संस्थापकों की तीसरी पीढ़ी के विश्वनाथ माफीदार जीवित थे, तब तक तो संकल्प यह भी था कि अड़तालीस घंटे तक सुर नहीं टूटना चाहिए। यानी दो दिन-दो रात तक संगीत का कोई न कोई कार्यक्रम चलता रहना चाहिए। सुबह-शाम संगीत की सभाएं होती थीं तो दिन के अंतराल में ग्रामीणों के गायन और रामायण-महाभारत के राग आधारित प्रसंग प्रस्तुत किए जाते थे। दूसरे दिन समारोह स्थल से एक संगीत यात्रा डेढ़ किमी दूर हनुमान मंदिर तक जाती थी। बीच में रोककर वंचित और महिला वर्ग के द्वारा व उनके लिए रंगारंग कार्यक्रम किया जाता था। यह अब आम जन का कार्यक्रम हो गया है। हनुमान मंदिर इस आयोजन की धुरी है।

 

पिपरौधा गांव के 45 साल पुराने श्रोता राजेन्द्र तिवारी बताते हैं- हनुमान मंदिर में आसपास के डेढ़ सौ गांवों की श्रद्धा है। इसके अखाड़े से जोड़कर ही यह उत्सव शुरू किया गया था। इस लोकप्रिय मंदिर की भजन मंडलियों ने शास्त्रीय संगीत को आधार देने में बड़ी मदद की। इंदौर के होलकर राजघराने के चहेते नाना साहब के शिष्य बलवंतराव पलनीटकर ने उनकी स्मृति में इसकी नींव रखी। 85 साल के संगीत गुरु रामचरण तिवारी ने भी संगीत रसिकों की पीढ़ी तैयार की। यदि क्षेत्र के गांवों में कोई न कोई गवैया-बजैया है, तो वह उनका शिष्य है।

मराठी माफीदार (मराठा राजाओं ने इन्हें जागीरदार बनाकर बसाया था) परिवार ने 110 साल तक समारोह को अपने ख़र्चे से अपने बाड़े में मंच बनाकर ही चलाया। यही नहीं, देश की नामी-गिरामी संगीत हस्तियों को कच्चे घर में ही टिकाते रहे। इस परिवार के अरुण पलनीटकर सिद्धहस्त सितारवादक हैं जो मप्र उस्ताद अलाउद्दीन खां अकादमी के निदेशक भी रहे। उनकी पत्नी अलकनंदा सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका हैं जो सागर विश्वविद्यालय की संगीत विभागाध्यक्ष रहीं। इनके चाचा विश्वनाथ बड़े जुनूनी थे। जो नृत्य की सार्वजनिक प्रस्तुतियों के लिए देशभर से कलाकारों को जुटाकर लाते रहे। डबरा के उस्ताद बशीर खां ने तो बुखार की स्थिति में भी प्रस्तुति देते हुए यहीं दम तोड़ा था।

इस बार आयोजक बढ़े हैं तो बड़े कलाकारों का जमावड़ा भी लग रहा है। इनमें पद्मभूषण बुद्धादित्य मुखर्जी (सितार) कोलकाता, पद्मश्री सुरेश तलवलकर (पखावज) पुणे, पद्मश्री उल्लास कसालकर,जयतीर्थ मेवुंडी, पं. रघुनंदन पलसीकर, गांधार देशपांडे (गायन) मुंबई व पं. विनोद द्विवेदी (ध्रुपद) कानपुर शामिल हैं। प्रसिद्ध सारंगी वादक उस्ताद दिलदार खां ठठवार 35साल तो मऊरानीपुर रियासत के तबला नवाज़ उस्ताद अमीर खां लगातार 45  साल शिरकत करते रहे। जयपुर दूरदर्शन केन्द्र के विख्यात तबला वादक निसार हुसैन खां व उनके पिता उस्ताद काले खां चार पुत्रों के साथ शामिल होते रहे हैं। इस तरह अब इसे इस इलाके की महत्वपूर्ण घटना तो मानना ही होगा, संगीत के क्षेत्र में काल के गाल पर अंकित होने वाली अनूठी इबारत कहना होगा।

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