गरीबों को मुफ्त और अच्छा इलाज मिले इसके लिए सरकार ने जरूरतमंदों के आयुष्मान कार्ड बना कर दे रही हैं। सरकार ने योजना तो ला दी लेकिन इसको जमीन पर साकार करने वाले जिम्मेदार शायद गंभीर नहीं है। गुरुवार रात से शुक्रवार तक शास्त्री नगर निवासी राम विलास (65) की इलाज के अभाव में मौत हो गई। यह आयुष्मान कार्ड धारक थे। बीचारे अच्छा इलाज न मिले के कारण उनकी मौत हो गयी।हैलट अस्पताल तमाशा बन गया…
मृतक के पोते मोहित ने बताया कि बाबा को एक महीने से कमर दर्द की शिकायत थी, वह उठ बैठ नहीं पाते थे। इलाज के लिए एक निजी डॉक्टर को दिखाया तो उसने एक्सरा करवा कर किसी बड़े अस्पताल में दिखाने की बात कही। शुक्रवार देर रात तकलीफ बढ़ने पर बाबा को लेकर उर्सला पहुंचे तो वहां डॉक्टरों ने देखने के बाद कहा इनकी कमर में टीवी हो गया है इसका इलाज हैलट में हो पाएगा यहां से ले जाओ, जब इलाज के लिए उर्सला से हैलट इमरजेंसी लेकर पहुंचे तो वहां कहा गया की सुबह लेकर आना, इतने में डॉ अलोक वर्मा राउंड लेते हुए आगए, जो बाबा का इलाज कर रहे थे, साथ में साथ में उन्होंने कुछ जांचे लिख दी जो हैलट में हो ही नहीं सकती।
डॉ अलोक वर्मा ने अपनी निजी प्रैक्टिस के चक्कर में ले ली एक जान…
दरअसल इस मरीज का इलाज सीनियर डॉक्टर आलोक वर्मा कर रहे थे, जब मरीज शक्रवार रात को उर्सला से हैलट पंहुचा तो उसको डॉ आलोक ने ही देखा और कहा की जांच करवाकर मुझे दोबारा दिखाओ। बीचारे तीमारदार और मरीज जांच करवाने के लिए दोबारा एम्बुलेंस कर के निजी पैथोलॉजी गए, क्योंकि हैलट में किसी प्रकार की जांचे नहीं हो रही है, जब वह लोग जाँच कराकर वापस हैलट पहुंचे तो उनको पता लगा कि डॉक्टर साहब उठ गए है, वह अपने घर में बनाई गयी ओपीडी में मरीज को देखेंगे। डॉ वर्मा से जब फोन पर बात की तो उन्होंने बोला कहा कि क्लीनिक ले आओ मरीज को, इसी बीच मरीज की मौत हो गई। जब यह बात डॉ वर्मा को बताई तो उनका कहना था कि सब ऊपर वाले की मर्जी।
एमआरआई तक की जांच नहीं है हैलट में…
आपको बता दें हैलट में सब काम सिर्फ कागज़ में ही होता है। अगर उस मरीज को एमआरआई मिल जाता तो शायद उसकी जान बच सकती थी। जीएसवीएम प्राचार्य डॉ संजय काला को इमरजेंसी में खड़े हो कर मीडिया के रिपोर्टर ने 10 कॉल किये लेकिन उन्होंने एक कॉल नहीं उठया, लेकिन जब उप-प्राचार्य डॉ ऋचा गिरी को इस मामले के बारे में जानकारी दी तो उन्होंने बोला ही मै मालूम करती हु क्या मसला है। उसके बाद उन्होंने भी इस मामले कोई इंटरेस्ट नहीं लेते हुए फोन उठाना बंद कर दिया। जिस व्यक्ति की मौत हुई है वह बच सकता था लेकिन हैलट अस्पताल में काम करने वालों ने किसी प्रकार की कोशिश नहीं की।
सरकारी डाक्टरों और निजी नर्सिंग होम्स की चल रही है मनमानी…
शहर में बने मधुराज अस्पताल में भी यह लोग उस मरीज को लेकर गए थे लेकिन आयुष्मान कार्ड धारक होने के कारण उनको एडमिट नहीं किया, और यह भी बोला गया कि यह कार्ड ले कर दोबारा यहां नहीं आना।