कहते है कि अगर देश को जीतना है तो यूपी को जीतना होगा। वहीं, यूपी में जीत हासिल करनी है तो फिर पूर्वांचल को जीतना जरूरी है। भाजपा भी पिछले तीन चुनावों से इसी फॉर्मूले को आजमाते हुए जीत हासिल कर रही है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी पूर्वांचल में पैठ बनाने की कोशिश हो रही है। कहा जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत भाजपा बड़े कार्यक्रम कर पूर्वांचल में चुनावी माहौल बनाने की कवायद में जुटी हुई है।
यूपी में विधानसभा चुनाव में करीब 5 महीने बाकी है। इन 5 महीनों में यूपी की सियासत को बदलने के लिए पीएम मोदी लगातार बड़ी विकास योजनाओं के शिलान्यास और खास तौर पर लोकार्पण कर रहे हैं।
इसी कड़ी में पीएम मोदी आज सिद्धार्थनगर व वाराणसी दौरे पर हैं। वह सिद्धार्थनगर से यूपी को 2,329 करोड़ की लागत से नवनिर्मित 9 मेडिकल कॉलेजों की सौगात देंगे। वहीं, अपने संसदीय क्षेत्र काशी से देश को ‘आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत’ योजना का उपहार देंगे। पिछले 3 महीने में प्रधानमंत्री का यह 5वां दौरा है। इतना ही नहीं महज 5 दिनों के अंदर ही प्रधानमंत्री मोदी पूर्वांचल के दूसरे दौरे पर है।
PM का मिशन UP
प्रधानमंत्री का मिशन यूपी शुरू हो चुका है। पीएम ने यूपी में खास तौर पर पूर्वांचल को साधने की शुरुआत 15 जुलाई के संसदीय क्षेत्र वाराणसी दौरे से ही कर दी थी। इसके बाद 14 सितंबर को पीएम मोदी ने अलीगढ़ दौरे में राजा महेंद्र प्रताप यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया। 5 अक्टूबर को लखनऊ में आयोजित अर्बन कॉन्क्लेव कार्यक्रम में भी शिरकत की। पीएम इसके बाद 20 अक्टूबर को कुशीनगर पहुंचे, जहां पूर्वांचल की जनता को इंटरनेशनल एयरपोर्ट की सौगात दी।
एक नजर में समझें 3 माह में 5 बार UP दौरा
- 15 जुलाई – वाराणसी
- 14 सितंबर – अलीगढ़
- 5 अक्टूबर – लखनऊ
- 20 अक्टूबर – कुशीनगर
- 25 अक्टूबर – सिद्धार्थनगर/ वाराणसी
BJP के लिए पूर्वांचल बेहद खास है
पीएम ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी और कुशीनगर का दौरा कर यह बता दिया कि पार्टी का फोकस इस बार पूर्वांचल को लेकर है। इसके पीछे वजह भी बेहद साफ है। यूपी में सारे विरोधी भी पूर्वांचल में अपनी ताकत आजमा रहे हैं। अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी और छोटे दल के साथ ओवैसी भी पूर्वांचल को अपना केंद्र बना चुके हैं। ऐसे में पार्टी एक बार फिर मोदी के जरिए पूर्वांचल को साधने की कवायद में जुट गई है।
भाजपा ने पूर्वांचल के अपने सबसे विश्वस्त साझेदार अपना दल को एक बार फिर अपने विश्वास में ले लिया और अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाया है। पूर्वांचल से आने वाले संजय निषाद को भी एमएलसी बनाकर इस समाज को साधने की कोशिश की है। हालांकि, पिछले चुनावों में भाजपा के साथी रहे और पूर्वांचल में पकड़ रखने वाले ओमप्रकाश राजभर, अखिलेश यादव के साथ हो गए हैं और पूर्वांचल पर ही ध्यान लगा रहे हैं। यहां सबसे ज्यादा ओबीसी और अति पिछड़ी जातियां हैं।
पूर्वांचल की 156 विधानसभा सीटों का गणित
पिछले तीन दशकों में पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा। वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में एक का साथ छोड़कर दूसरे का साथ पकड़ता रहा है। यही वजह है कि भाजपा 2022 के चुनाव में अपनी जड़ें मजबूत करने में जुट गई है।
पूर्वांचल में कुल 26 जिले हैं और यहां विधान सभा की 156 सीटें हैं। अगर 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने (BJP)106 सीटों पर कब्जा किया था। सहयोगी दलों को मिलाया जाए तो यह आंकड़ा 128 सीटें भाजपा ने जीतीं। वहीं, समाजवादी पार्टी (SP) को 18, बसपा को 12, अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) को 4, कांग्रेस को 4 और निषाद पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी, जबकि 3 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।
लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा के पक्ष में रहा पूर्वांचल
पूर्वांचल के 26 जिलों में लोकसभा की 29 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा (BJP) ने 22 सीटों पर कब्जा किया था। वहीं, सपा और बसपा गठबंधन के खेमे 6 सीटे, जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक सीट आई थी।