राजस्थान : गहलोत समर्थक विधायकों का विद्रोह, 90 ने दिया इस्तीफा

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कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव राजस्थान सरकार के लिए ग्रहण बन गया है। दरअसल, पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रदेश प्रभारी अजय माकन चाहते थे कि नामांकन दाखिल करने से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उत्तराधिकारी का नाम तय करने का अधिकार विधायक दल की बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर सोनिया को सौंपा जाए, लेकिन गहलोत खेमा इसके लिए तैयार नहीं हुआ। गहलोत समर्थक विधायकों ने साफ कहा कि उनकी राय के बिना मुख्यमंत्री का फैसला नहीं होना चाहिए। दूसरी ओर गहलोत ने कहा है कि कांग्रेस ने उन्हें 40 साल में बहुत कुछ दिया, अब नई पीढ़ी को मौका दिया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर गहलोत समर्थक लगभग 90 विधायकों ने रविवार रात सियासी ड्रामेबाजी के बीच विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को अपने इस्तीफे सौंप दिए। इनमें निर्दलीय विधायक भी शामिल थे। बाद में सोनिया ने फोन पर खड़गे और माकन को एक-एक विधायक से मिलकर उनकी राय जानने के निर्देश दिए। सोनिया के कहने पर संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल ने देर रात फोन पर गहलोत से बात भी की, लेकिन गहलोत ने उन्हें साफ कहा कि अब हालात उनके वश में नहीं हैं।

राजस्थान में रविवार को जो सियासत देखने को मिली, उसकी पठकथा एक दिन में नहीं लिखी गई थी। अशोक गहलोत की भाषा भले ही राहुल गांधी के एतराज के बाद बदल गई हो, मगर वह कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने की स्थिति में भी मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। इतना ही नहीं, वह किसी भी हाल में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को भी गद्दी नहीं देना चाहते। ऐसे में इसके साफ संकेत मिल रहे थे कि उनके उत्तराधिकारी का चुनाव आसान नहीं होगा। यही वजह है कि रविवार को विधायक दल की बैठक से पहले ही राजनीतिक गलियारे में सियासी तूफान की आहट महसूस होने लगी थी।

दिन में ही गहलोत समर्थक विधायकों ने संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक की। इसमें साफ कहा कि जिन लोगों ने भाजपा के साथ मिलकर दो साल पहले सरकार गिराने का प्रयास किया, उनमें से कोई मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए। पायलट खेमे की बगावत के समय सरकार के साथ रहे विधायकों में से किसी को भी मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। वे कृषि मंत्री लालचंद कटारिया अथवा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी में से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में हैं। विधायकों ने पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की आलाकमान की मंशा के खिलाफ किसी भी हद तक जाने की बात भी कही। गहलोत समर्थक विधायकों के कड़े रुख के कारण मुख्यमंत्री निवास पर रविवार शाम सात बजे होने वाली विधायक दल की बैठक का समय तीन बार बदला गया। अंत में रात आठ बजे का समय तय किया गया, फिर भी गहलोत समर्थक विधायक नहीं पहुंचे। पायलट सहित मात्र 28 विधायक ही पहुंचे। सोनिया की ओर से भेजे गए पर्यवेक्षक खड़गे और प्रदेश प्रभारी माकन मुख्यमंत्री निवास पर विधायकों का इंतजार करते रहे। आखिरकार बैठक रद कर दी गई। सूत्रों का कहना है कि गहलोत समर्थक अगले दो दिन में दिल्ली जाकर आलाकमान से मिल सकते हैं। उधर, जैसलमेर में तनोट माता मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद गहलोत ने कहा कि सोनिया गांधी ने नौ अगस्त को ही अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन सभी के आग्रह पर वह मान गई थीं।

गहलोत समर्थक विधायकों ने पायलट के खिलाफ उनके खेमे द्वारा की गई बगावत को मुद्दा बनाया है। तकनीकी शिक्षा मंत्री सुभाष गर्ग ने कहा कि आलाकमान को याद रखना चाहिए कि दो साल पहले भाजपा के साथ मिलकर सरकार गिराने की साजिश की गई थी। तब गहलोत ने 102 विधायकों के साथ मिलकर सरकार बचाई थी। नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, आपदा प्रबंधन मंत्री गोविंद राम मेघवाल ने कहा कि गहलोत ही मुख्यमंत्री रहने चाहिए। धारीवाल और खाचरियावास ने कहा कि हम सोनिया के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमारी बात सुनी जानी चाहिए। इस दौरान गहलोत और सोनिया के समर्थन में नारेबाजी भी हुई।

सीपी जोशी को इस्तीफा देने के बाद धारीवाल, खाचरियावास और लोढ़ा मुख्यमंत्री निवास पर जाकर खड़गे और माकन से मिले। उन्होंने कहा, हम सोनिया का सम्मान करते हैं। देर रात करीब 12 बजे विधायक विधानसभा अध्यक्ष के आवास से अपने आवास पर चले गए। सोमवार को खड़गे और माकन एक-एक विधायक से मिलेंगे। वहीं, मेघवाल ने कहा कि अब आगे की रणनीति पर सोमवार को चर्चा होगी। जबकि धारीवाल का कहना था, अब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद अक्टूबर में ही बात होगी। निर्दलीय विधायक बाबूलाल नागर ने कहा कि पहले गहलोत अध्यक्ष बनेंगे उसके बाद मुख्यमंत्री का फैसला होगा। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र ¨सह शेखावत ने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस सरकार फिर बाड़ेबंदी में जाने को तैयार है। नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि पायलट के प्रति सहानुभूति है। हम कांग्रेस का खेल देख रहे हैं।

कांग्रेस विधायक गिर्राज सिंह और खिलाड़ी लाल बैरवा ने धारीवाल के आवास पर हुई बैठक पर आपत्ति जताते हुए कहा इसका कोई औचित्य नहीं था। जब आलाकमान ने पर्यवेक्षक भेजे हैं, उससे पहले बैठक करने का क्या मतलब है। गिर्राज ने लोढ़ा और गर्ग के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जो कांग्रेस में नहीं हैं, उन्हें पार्टी के अंदरूनी मामलों में नहीं बोलना चाहिए।

  1. कांग्रेस – 107
  2. भाजपा – 73
  3. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी – 3
  4. माकपा – 2
  5. भारतीय ट्राइबल पार्टी – 2
  6. निर्दलीय – 13
  7. नोट – सभी निर्दलीय और माकपा विधायक कांग्रेस सरकार के साथ हैं।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि गहलोत समर्थक विधायक विद्रोह के बाद सरकार गिराने की स्थिति में तो हैं, मगर बनाने की नहीं। सरकार बनाने के लिए 101 विधायकों की जरूरत है। 90 उनके साथ हैं, मगर 28 विधायक गहलोत समर्थकों के साथ जाने के बजाय विधायक दल की बैठक में शामिल होने पहुंचे थे। ऐसे में कहा जा सकता है कि वे पायलट समर्थक ही होंगे। यदि वे गहलोत के खेमे में नहीं गए तो वे सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा नहीं पा सकते। दूसरी तरफ, पायलट अगर इन विधायकों को लेकर भाजपा से मिल जाएं तो आसानी से सरकार बना सकते हैं, क्योंकि भाजपा के पास 73 विधायक हैं।

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