मुंबई. टेक कंपनियों के लिए डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स (डीवीआर) शेयर जारी करने के लिए पूंजी बाजार नियामक सेबी ने गुरुवार को नया फ्रेमवर्क जारी किया। नियामक के इस कदम से ऐसी कंपिनयों के प्रमोटर्स को आईपीओ लाने में आसानी होगी।
नया फ्रेमवर्क सिर्फ टेक कंपनियों के लिए होगा
- बोर्ड मीटिंग के बाद सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने बताया कि नए फ्रेमवर्क के तहत सुपीरियर वोटिंग राइट्स शेयर रखने वाली टेक कंपनियों को आईपीओ लाने की इजाजत होगी लेकिन यह आईपीओ केवल साधारण शेयरों के लिए होगा। उन्होंने कहा कि नया फ्रेमवर्क केवल टेक कंपनियों के लिए होगा।
- ऐसी कंपनियां जो अपने प्लेटफॉर्म पर उत्पाद, सर्विस या बिजनेस देने के लिए टेक्नालॉजी, इन्फॉरमेशन टेक्नालॉजी, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी, डाटा एनालिटिक्स, बायो-टेक्नालॉजी या नैनो टेक्नालॉजी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, सेबी उन्हें इनोवेटर ग्रोथ प्लेटफॉर्म के नियम के तहत परिभाषित करता है।
- सेबी ने कहा, हालांकि यह नियम शर्तों के साथ जुड़ा होगा। इसके तहत सुपीरियर राइट्स शेयरहोल्डर प्रमोटर ग्रुप का हिस्सा नहीं होना चाहिए, जिसकी कुल नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए। कुल नेटवर्थ और निवेश की गणना के लिए भी नियम होंगे। इसमें कहा गया है कि सुपीरियर राइट्स शेयरहोल्डर केवल प्रमोटर/फाउंडर को जारी किए गए हों जो कंपनी में एक्जीक्यूटिव हों और उन्हें इसके लिए खास एजीएम रेजोल्यूशन के तहत अधिकृत किया गया हो। यानी आईपीओ फाइलिंग से छह महीने पहले सुपीरियर राइट्स शेयर जारी कर दिए गए हों।
जानिए क्या होते हैं डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स शेयर
डिफरेंशियल वोटिंग राइट्स (डीवीआर) शेयर साधारण इक्विटी शेयर की तरह होते हैं लेकिन इसमें शेयरहोल्डर के पास वोटिंग राइट्स कम होते हैं। डीवीआर दो तरह के होते हैं। पहले में सुपीरियर वोटिंग्स राइट्स होते हैं। दूसरे में वोटिंग राइट्स कम होते हैं लेकिन डिविडेंड ज्यादा होता है। कम वोटिंग राइट्स के कारण आमतौर पर डीवीआर डिस्काउंट पर ट्रेड करते हैं।
क्यों जारी किए जाते हैं डीवीआर ?
मालिकाना स्ट्रक्चर पर असर न पड़े, इसलिए कंपनियां डीवीआर जारी करती हैं। होस्टाइल टेकओवर (जबरन अधिग्रहण) से बचने के लिए भी कंपनियां डीवीआर जारी करती हैं।