लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सूबे की 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूसित जाति की श्रेणी में रखने का निर्णय लिया था। इसको लेकर सरकार की तरफ से शासनादेश भी जारी कर दिया गया था लेकिन अब केंद्र सरकार ने ही योगी के इस फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए इस जोर का झटका दिया है। केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद अब योगी सरकार अपने फैसले को वापस ले सकती है। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से संसद में दिए गए बयान को लेकर उप्र सरकार की तरफ से कोई भी मंत्री और अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।
केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने मंगलवार को कहा कि किसी जाति को किसी अन्य जाति के वर्ग में डालने का काम संसद का है। अगर यूपी सरकार ने इन जातियों को ओबीसी से एससी में लाना चाहती है तो उसके लिए प्रक्रिया है। राज्य सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव भेजेगी तो हम उस पर विचार करेंगे। लेकिन अभी जो आदेश जारी किया है वह संवैधानिक नहीं है, क्योंकि अगर कोई कोर्ट में जाएगा तो वह आदेश निरस्त होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी सरकार के इस कदम को बताया था धोखा
योगी सरकार के इस फैसले को बसपा सुप्रीमो मायावती ने धोखा करार देते हुए इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक कहा था। सोमवार को मायावती ने कहा कि ये राजनीति से प्रेरित फैसला है। योगी सरकार का घेराव करते हुए मायावती ने कहा कि योगी सरकार इन 17 पिछड़ी जातियों के लोगों के साथ धोखा कर रही है। इन्हें किसी भी श्रेणी का लाभ नहीं मिल पाएगा। योगी सरकार इन्हें ओबीसी नहीं मानेंगी और अनुसूचित जाति की श्रेणी का लाभ इन्हें मिलेगा नहीं, क्योंकि राज्य सरकार अपने आदेश के अनुसार न तो इन्हें किसी श्रेणी में डाल सकती है और न ही हटा सकती है।
इन पिछड़ी जातियों को अनुसूचित श्रेणी में शामिल करने जारी हुआ है आदेश
योगी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए 17 अति- पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने का आदेश जारी किया है। जिन 17 अति- पिछड़ी जातियों को ये फायदा पहुंचेगा वो हैं- कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ। यूपी सरकार के इस फैसले पर अब सियासत शुरू हो गई है।
पहले की सरकारें भी कर चुकी हैं यह कवायद
पिछली सपा सरकार ने ओबीसी की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से संबंधित एक आदेश जारी किया गया था। जिसके खिलाफ डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जनकल्याण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसपर कोर्ट ने अग्रिम आदेश तक स्टे लगा दिया था। इसके बाद 29 मार्च, 2017 को हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार के इस फैसले के तहत कोई भी जाति प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, तो वह कोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन होगा।