बिहार की राजनीति में बाहर नजर आने लगी है जदयू की भीतरी खेमेबंदी

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राजनीतिक दलों की सक्रियता ही उनके जीवंत होने का प्रमाण है। सामान्य दिनों में अपनी ताकत बढ़ाने और विरोधियों की ताकत कम करने के लिए यह सक्रियता होती है। कभी-कभी जब बाहर के मोर्चे पर लड़ाई की गुंजाइश कम रहती है, तो दलों के भीतर ही जोर आजमाइश शुरू हो जाती है। बिहार में आजकल कुछ यही हाल चल रहा है। प्रतिद्वंद्वियों से उलझने का किसी के पास कोई सीधा मौका नहीं है, लिहाजा आपस में ही शक्ति प्रदर्शन जारी है। यह शक्ति प्रदर्शन सत्तारूढ़ दल जदयू और मुख्य विपक्षी दल राजद दोनों में जारी है।

नीतीश कहते हैं कि ललन सिंह को अध्यक्ष बनाने की पेशकश खुद आरसीपी ने ही की थी। जबकि आरसीपी के करीबियों का दावा है कि उनकी इच्छा दोनों पदों पर रहने की थी। यह अलग बात है कि आरसीपी ने कभी अपनी इच्छा का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन नहीं किया।

पिछले साल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार और संगठन दोनों के प्रधान थे। 10 महीने पहले उन्होंने संगठन के प्रत्यक्ष नेतृत्व से खुद को अलग कर लिया और विश्वस्त समङो जाने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) को संगठन का उत्तराधिकारी बनाते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। सब ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन केंद्र में मंत्रिपरिषद विस्तार के बाद घटनाक्रम बदलने लगा। जदयू की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह और वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह दोनों की दावेदारी थी, लेकिन मंत्री पद केवल आरसीपी के हाथ लगा। भरपाई के लिए ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। नीतीश कुमार कहते हैं कि ललन सिंह को अध्यक्ष बनाने की पेशकश खुद आरसीपी ने ही की थी। जबकि आरसीपी के करीबियों का दावा है कि उनकी इच्छा दोनों पदों पर रहने की थी। यह अलग बात है कि आरसीपी ने कभी अपनी इस इच्छा का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन नहीं किया। केंद्र में मंत्री बनने के तुरंत बाद उनका सार्वजनिक बयान यही आया कि जब कहा जाएगा, वह अध्यक्ष का पद छोड़ देंगे। किसी के मन में क्या है, इसके बारे में ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। 31 जुलाई को जब नई दिल्ली में जदयू के राष्ट्रीय पद का हस्तांतरण हो रहा था तो आरसीपी खुश ही नजर आ रहे थे।

लेकिन सब कुछ ठीक नहीं रहा। अध्यक्ष बनने के छठे दिन ललन सिंह पटना पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ। इसके बाद ही जदयू की आंतरिक खेमेबाजी टुकड़ों में बाहर आने लगी। ललन सिंह के स्वागत में भारी भीड़ जुटी। अब मंत्री बनने के बाद आरसीपी पहली बार 16 अगस्त को पटना आ रहे हैं और उनके स्वागत के लिए ललन सिंह से लंबी लकीर खींचने की तैयारी है। आरसीपी के समर्थकों की योजना है कि 16 अगस्त को ऐसी भीड़ जुटे कि तटस्थ प्रेक्षक ललन सिंह के स्वागत के लिए जुटी भीड़ से उसकी तुलना कर सकें। कह सकें कि ललन की तुलना में आरसीपी का स्वागत बेहतर रहा। यह गुटबाजी पोस्टर-बैनर में साफ झलकने लगी है। छोटे-मझोले नेता पोस्टर और बैनर में ललन सिंह और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की तस्वीर न देकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जदयू में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालांकि पार्टी के सर्वोच्च नेता नीतीश कुमार गुटबाजी की किसी संभावना से इन्कार करते हैं। यह भी 16 अगस्त को ही ठीक-ठीक पता चलेगा कि आपस में लोग सचमुच उलझ रहे थे या महज एक पखवाड़े की यह नूरा कुश्ती थी। संभव है कि उस दिन मंच पर सभी नेता गले मिलें और गुटबाजी के नाम पर एक दूसरे पर वार करने वाले कार्यकर्ता नीचे बैठ कर ताली बजाते रह जाएं।

मुख्य विपक्षी दल राजद में अक्सर अपनी हरकतों से असहज स्थिति पैदा करने वाले लालू के बड़े लाल तेजप्रताप फिर सुर्खियों में हैं। उनका निशाना फिर प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह बने हैं। हाल ही में भरी सभा में जगदानंद को हिटलर बता तेजप्रताप ने माहौल गर्म कर दिया है। खबर है कि जगदानंद इससे बुरी तरह आहत हैं और दफ्तर आने में उनकी दिलचस्पी नहीं रह गई है। यह पहली बार नहीं हुआ है कि तेजप्रताप ने जगदानंद पर अप्रिय टिप्पणी की है। इससे पहले भी कई बार वे जगदानंद को आहत कर चुके हैं। बीच में उनके पार्टी छोड़ने की खबर आने लगी थी, लेकिन लालू प्रसाद के मनाने पर वे मान गए थे। लेकिन इस बार ताज्जुब की बात यह भी है कि खुद लालू प्रसाद या विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने अब तक उन्हें मनाने की कोशिश शुरू नहीं की है।

वैसे, तेजप्रताप को राजद या दूसरे दलों में कोई गंभीरता से नहीं लेता है। फिर भी उनकी हरकतें विरोधियों को भले ही मनोरंजक लगें, लेकिन राजद पर अब भारी पड़ने लगी हैं। देखना है कि इस बार हालात सामान्य होते हैं या जगदानंद सिंह की नाराजगी पार्टी के लिए कोई दिक्कत खड़ी करती है।

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