Budget 2025: अब हफ्ते में 4 दिन करना होगा काम, 3 दिन मिलेगी छुट्टी!

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नए लेबर कोड लागू होने पर कर्मचारियों के काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 घंटे किए जा सकते हैं। हालांकि, हफ्ते में कुल कार्य घंटों की सीमा 48 घंटे होगी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट 2025 में लेबर कोड्स को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की घोषणा कर सकती हैं। सरकार का लक्ष्य देश के श्रम कानूनों को सरल और प्रभावी बनाना है, जिससे कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचे। नए लेबर कोड्स के तहत कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ेंगे, साथ ही हफ्ते में चार दिन काम करने और तीन दिन आराम का विकल्प मिलेगा।

 

तीन चरणों में होगा लागू

नए लेबर कोड्स को तीन चरणों में लागू किया जाएगा ताकि छोटे और बड़े कारोबार नई नीतियों के अनुरूप तैयारी कर सकें।

  1. पहला चरण: 500 से अधिक कर्मचारियों वाली बड़ी कंपनियों पर लागू होगा।
  2. दूसरा चरण: 100-500 कर्मचारियों वाली मझोली कंपनियों पर।
  3. तीसरा चरण: 100 से कम कर्मचारियों वाली छोटी कंपनियों पर।

MSME सेक्टर, जो भारत के उद्योग का 85% से अधिक हिस्सा है, को इन कोड्स को अपनाने के लिए लगभग दो साल का समय मिलेगा।

मार्च 2025 तक तैयार होगा ड्राफ्ट

लेबर मंत्रालय पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों के साथ मिलकर ड्राफ्ट तैयार कर रहा है। पहले चरण में कोड ऑन वेजेस और सोशल सिक्योरिटी कोड लागू किया जाएगा। उम्मीद है कि मार्च 2025 तक सभी राज्यों के साथ ड्राफ्ट नियम अंतिम रूप ले लेंगे।

क्या हैं लेबर कोड्स?

29 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार लेबर कोड्स में समाहित किया गया है:

  1. कोड ऑन वेजेस
  2. सोशल सिक्योरिटी कोड
  3. इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड
  4. ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड

इनका उद्देश्य:

  • कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा मजबूत करना।
  • नियोक्ताओं के लिए प्रक्रियाओं को आसान बनाना।
हफ्ते में चार दिन काम, तीन दिन आराम

लेबर कोड्स के तहत हफ्ते में चार दिन काम और तीन दिन आराम की नीति शामिल हो सकती है। हालांकि, चार दिन काम करने पर काम के घंटे बढ़कर 12 घंटे हो जाएंगे।

प्रॉविडेंट फंड में बढ़ेगा योगदान
  • पीएफ कटौती बढ़ने से कर्मचारियों के रिटायरमेंट फंड में इजाफा होगा।
  • हालांकि, टेक-होम सैलरी (महीने की सैलरी) कम हो सकती है।
कर्मचारियों और नियोक्ताओं पर असर
  1. कर्मचारियों को लंबी अवधि में बेहतर सामाजिक सुरक्षा मिलेगी।
  2. कंपनियों को श्रम कानूनों का पालन करना अधिक सरल होगा।
  3. वर्क-लाइफ बैलेंस में सुधार होगा, जिससे उत्पादकता बढ़ सकती है

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