रेलवे की व्यवस्थाएं नहीं हैं पटरी पर

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कोरोना का संक्रमण धीर-धीरे कम हो रहा है, लेकिन रेलवे की व्यवस्थाएं अभी भी पटरी पर नहीं आ रही हैं। पिछले साल कोरोना संक्रमण के बाद कुछ ट्रेनें स्थायी रूप से बंद कर दी गई तो कुछ को स्पेशल बनाकर कभी रद्द तो कभी संचालित किया जाता है।

ट्रेनों को स्पेशल बनाकर रेलवे यात्रियों से सामान्य ट्रेनों में भी 15 से 30 फीसदी अधिक किराया ले रहा है, लेकिन यात्रियों को दी गई सुविधाओं का रखरखाव रेलवे के लिए जरूरी नहीं है। इसके पीछे रेलवे की दलील है कि जब यात्री ही नहीं आ रहे, तो रखरखाव क्यूं किया जाए?

दुर्गापुरा स्टेशन पर एस्केलेटर को रेलवे डेढ़ साल में भी शुरू नहीं कर पाया है। इसे बीते साल जुलाई तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। वहीं स्टेशन मास्टर का ऑफिस ट्रेनों का सफल संचालन करने का कम और यात्रियों के पूछताछ का केंद्र अधिक बन गया है।

पहले स्टेशन मास्टर के ठीक पास वाला ऑफिस टिकट चैकिंग और पूछताछ के लिए था, लेकिन पिछले दिनों बुकिंग, रिजर्वेशन और पूछताछ का ऑफिस स्टेशन के बाहर पीछे शिफ्ट कर दिया गया है। दूर होने के कारण यात्री ट्रेन छूट जाने के डर से स्टेशन मास्टर ऑफिस से ही पूछताछ करते हैं। पिछले छह महीने से लगेज स्कैनर मशीन और यात्रियों की जांच करने वाली डीएफएमडी मशीन भी खराब पड़ी है।

पार्किंग एट ऑन रिस्क

पिछले दो महीने से लोगों को फोर और टू व्हीलर भी स्वयं की जोखिम (ऑन रिस्क) पर पार्क करने को मजबूर होना पड़ रहा है। पार्किंग की लाइसेंस फीस अधिक होने के कारण कोई स्टेशनों की पार्किंग का ठेका ही नहीं ले रहा है। यात्रीभार कम होने की वजह से पार्किंग ठेकेदार घाटा होने के डर से पार्किंग व्यवस्था ही नहीं संभाल रहा है। कई स्टेशनों पर तो ठेकेदार बीच अवधि में से ही पार्किंग छोड़कर चले गए।

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